मानवाधिकार संरक्षणं अधिनियम = Manavadhikar Saravshan Adhiniyam
कृष्ण कुमार शर्मा= Krishna Kumar Sharma
- India Arjun Publishing House 2012
- 270p. 20 x 14 x 4 cm
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम
मानव अधिकारों की अवधारणा अति प्राचीन है। यह उतनी ही पुरानी है जितनी कि मानव जाति, समाज और राज्य मानव अधिकारों की धारणा मानव सुख से जुड़ी है। मानव सुख की धारणा बढ़ते-बढ़ते सामाजिक सुख, राष्ट्रीय सुख और अन्तर्राष्ट्रीय सुख में परिणत हो गई है। आधुनिक काल में यह माना जाने लगा है कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुख-समृद्धि मानव अधिकारों की उपलब्धि और उपभोग पर आधारित हैं। मानव अधिकार के बारे में कई सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए हैं। प्रारंभ में सबसे प्रमुख सिद्धान्त प्राकृतिक विधि के दार्शनिकों ने यह प्रतिपादित किया कि प्राकृतिक अधिकार ही सर्वोच्च हैं। प्राकृतिक अधिकार वे अधिकार हैं जो मनुष्य की प्रकृति में अन्तर्निहित हैं। इस प्रकार मानवाधिकार प्राकृतिक अधिकरण के रूप में माना गया। इन अधिकारों को इन दार्शनिकों ने आत्यंतिक और निरपेक्ष बताया और यह प्रतिपादित किया कि प्राकृतिक अधिकार सर्वव्यापी हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में मानवाधिकार से सम्बन्धित सिद्धान्तों को समावेशित किया गया है। मानवाधिकार का सर्वागीण विवेचन विस्तृत रूप से किया गया है। पुस्तक की भाषा सरल और सुबोध है। विधि, राजनीतिशास्त्र, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों और सिविल सेवा वाले छात्रों के लिए यह पुस्तक विशेष उपयोगी सिद्ध होगी। इसके अलावा अध्यापक, शोधकर्त्ता और सामान्य पाठक के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।
9788183303460 Rs 825.00
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